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रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन का यह कहना कि किसी भी देश के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार, उस देश को अपने बाह्य झटकों से पूरी तरह नहीं बचा सकता। यह उनकी सही और सटीक दृष्टि है। हाल ही में वाशिंगटन के ब्रूकिंग्स इंस्टीच्यूशन द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में राजन ने कहा था कि हमारे पास पर्याप्त मुदा भंडार है लेकिन कोई भी देश अंतरराष्ट्रीय प्रणाली से अपने आपको को अलग नहीं कर सकता। पिछले वित्त वर्ष के दौरान भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 300 अरब डालर के स्तर को पार कर गया था। राजन ने यह भी स्पष्ट किया था कि मेरी यह टिप्पणी इस आकांक्षा के मद्देनजर है कि अंतरराष्ट्रीय प्रणाली और स्थिर हो। ऐसी प्रणाली हो जो अमीर-गरीब, बडे-छोटे सबके लिए मुनासिब हो न कि सिर्फ हमारे हालात के मुताबिक हो। औद्योगिक देशों की अपारंपरिक नीतियों के बारे में उन्होंने कहा कि जब बडे़ देशों में मौद्रिक नीति बेहद और अपरंपरागत तौर पर समायोजक हो तो पूंजी प्रवाह प्राप्त करने वाले देशों को फायदा जरुरत होगा। ऐसा सिर्फ सीमा-पार के बैंकिंग प्रवाह के प्रत्यक्ष असर के कारण नहीं हुआ बल्कि अप्रत्यक्ष असर से भी हुआ क्योंकि विनिमय दर में मजबूती और परिसंपत्तियों विशेष तौर पर रीयल एस्टेट की बढ़ती कीमत के कारण लगता है कि ऋण लेने वाले के पास वास्तविकता से ज्यादा इक्विटी है। ऐसे हालात में पूंजी प्रवाह प्राप्त करने वाले देश में विनिमय दर में लचीलेपन से संतुलन की बजाय अप्रत्याशित उछाल को बढ़ावा मिलता है। राजन ने एक अप्रैल को मौद्रिक नीति की घोषणा के अगले दिन विश्लेषकों के साथ बातचीत में कहा था कि चीन के स्तर से कम के विदेशी मुद्रा भंडार के साथ सुकून से नहीं रहा जा सकता। राजन ने यह भी कहा था कि हमारे पास काफी मुद्रा भंडार है लेकिन, मुख्य मुद्दा यह है कि किस स्तर पर आप अपने को सुरक्षित महसूस करते हैं। लगता है कि यदि आप सिर्फ मुद्रा भंडार पर ध्यान केंद्रित करते हैं तो ऐसे कोई भी ऐसा स्तर नहीं है जिसमें आप सुरक्षित महसूस करें। यह टिप्पणी इसलिए महत्वपूर्ण है क्यों कि भारत में केंद्रीय बैंक द्वारा विदेशी मुद्रा भंडार का लक्ष्य निर्धारित करने की परंपरा नहीं रही है। चीन का विदेशी मुद्राभंडार 2013 के अंत में 3,660 अरब डालर था जो विश्व में सबसे अधिक है जबकि सबसे अच्छी स्थिति में भी भारत का मुद्राभंडार कभी 322 अरब डालर से अधिक नहीं रहा।
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